सौजन्य *eBuddha Library*
Why You Should Never Get A Job - Ten Reasons
(Original Post : 10 Reasons You Should Never Get a Job, July 21st, 2006 by Steve Pavlina)
यह एक मजेदार बात है कि जब लोग एक खास उम्र पर पहुँचते हैं, जैसे कि कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद, वे यह मान लेते हैं कि अब, बाहर निकलकर अपने लिए एक नौकरी तलाश करने का वक्त आ गया है| लेकिन, उन बहुत सी चीजों की तरह जिन्हें लोग करते हैं, ऐसा करना और यह मान लेना कि यही करना सही है कोई अच्छा विचार नहीं है| वास्तव में, अगर आप सामान्य(reasonably) रूप से एक समझदार व्यक्ति हैं, तो नौकरी हासिल करना, अपना जीवन-यापन(support yourself) करने के लिए किए जाने वाले उपायों में से सबसे बुरा उपाय है| अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए, खुद को बंधुआ-मजदूर(indentured servitude) बनाकर, बेचने के अलावा और कहीं बेहतर तरीके मौजूद हैं|
यहाँ कुछ कारण दिए गए हैं कि क्यों आपको नौकरी हासिल करने से बचने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए
*1. अनाड़ियों के लिए इनकम|*
नौकरी हासिल करना और धन कमाने के लिए अपने समय को बेचना एक अच्छा विचार लग सकता है| इसके साथ केवल एक ही समस्या है| यह बेवकूफी भरा विचार है| जिन तरीकों से आप आय(Income) कमा सकते हैं यह उनमें से सबसे ज्यादा मूर्खतापूर्ण तरीका है| यह वाकई में अनाड़ियों के लिए आमदनी का जरिया है|
आखिर नौकरी हासिल करना इतना बचकाना विचार क्यों है? क्योंकि जितना वक्त आप काम करते हैं आपको केवल उसी समय के लिए वेतन मिलता है| क्या आपको इसमें कोई समस्या नजर नहीं आती, या फिर आपके दिमाग में यह विचार अच्छी तरह से बिठा दिया गया है कि जितना समय आप काम करेंगे उतने ही समय का वेतन आपको मिलेगा, और आप सोचने लगे हैं कि आखिर इसमें गलत क्या है, यही सही और समझदारी भरा विचार है| क्या आपने यह कभी नहीं सोचा कि कितना अच्छा होता अगर आपको उस समय का वेतन भी मिलता जब आप आराम कर रहे होते? यह आपको किसने बताया कि आप केवल काम करते वक्त ही ‘इनकम’ कमा सकते हैं? शायद किसी दूसरे ब्रेनवाशड(brainwashed) कर्मचारी ने?
क्या आपको नहीं लगता कि आपका जीवन कहीं ज्यादा आसान होता अगर आपको उस वक्त का वेतन भी मिलता जब आप खाना खा रहे होते, सो रहे होते या फिर बच्चों के साथ खेल रहे होते? आपको 24 घंटे और 7 दिनों का वेतन क्यों नहीं मिलना चाहिए? वेतन मिलता रहे चाहे आप काम कर रहे हों या फिर आराम से बैठे हों! जिस वक्त आप अपने पौधों की देखभाल नहीं कर रहे होते क्या वे बढना छोड़ देते हैं? फिर आपका बैंक अकाउंट भी क्यों न पौधों की तरह ही बढ़ता रहे?
किसे परवाह है कि आप ऑफिस में कितने घंटे काम करते हैं? इस पूरी धरती पर केवल मुठ्ठी-भर लोग ही परवाह करते हैं कि आप ऑफिस में कितना समय बिताते हैं| हममें से ज्यादातर लोगों को तो पता भी नहीं चलता कि आप हफ्ते में 6 घंटे काम करते है कि 60 घंटे| लेकिन अगर आपके पास हमें देने के लिए कुछ मूल्यवान(value) वस्तु है, तो हममें से काफी लोग खुशी-खुशी अपना बटुआ निकालकर आपको इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाएँगे| हमें आपके समय की परवाह नहीं है – हम सिर्फ, प्राप्त होने वाले मूल्य के लिए, सही कीमत चुकाने की परवाह करते हैं| क्या आपको वास्तव में इस बात की परवाह है कि यह लेख लिखने में मुझे(Steve Pavlina) को कितना वक्त लगा? अगर इसे लिखने में 3 घंटे के बजाय 6 घंटे का समय लगा हो तो क्या आप मुझे इसकी दोगुनी कीमत देंगे?
समझदार लोग, अक्सर अनाड़ियो के रास्ते पर चलकर, परम्परागत तरीके से वेतन कमाने से शुरुआत करते हैं| इसलिए, अगर आपको अभी इस बात का एहसास हो रहा है कि आपको निचोड़ लिया गया है, तो बुरा महसूस मत कीजिए| गैर-अनाड़ियों को आखिरकार इस बात का एहसास हो जाता है कि धन कमाने के लिए अपने समय को बेचना, वास्तव में कोरी मुर्खता ही है और यह भी कि इससे बेहतर कोई तरीका भी होना चाहिए| और बेशक इससे बेहतर एक तरीका है| इसका राज है अपने मूल्य को अपने समय से अलग करना||
स्मार्ट(बुद्धिमान) लोग ऐसे सिस्टम बनाते हैं जिनसे कि 24 घंटे/7तों दिन कमाई होती है, खासकर कि निष्क्रिय-आय(passive income)| इसमें शामिल हो सकता है, एक बिजनेस शुरू करना, एक वेब-साईट का निर्माण, एक निवेशक(investor) बनना, या फिर रचनात्मक काम से रॉयल्टी-इनकम कमाना| सिस्टम लगातार मूल्य लोगों तक पहुंचाता रहता है और इससे इनकम उत्पन्न करता रहता है, और एक बार यह रफ़्तार पकड़ ले, तो यह लगातार चलता रहता है फिर चाहे आप इसके देखभाल करें या न करें| उस पल से, आपका अधिकतर समय अपनी आमदनी को बढाने में लग सकता है(आपके सिस्टम को और बेहतर बनाने में या फिर नए सिस्टम बनाने में) बजाय इसके कि वह समय केवल अपनी आमदनी को बरकरार(maintain) रखने में ही इस्तेमाल हो पाए|
बेशक, अपने खुद के ऐसे सिस्टम डिजाइन करने को, अमल(implement) में लाने के लिए, जोकि आपकी आमदनी का जरिया बनें, शुरुआत में कुछ समय और प्रयास की जरूरत होती है| लेकिन आपको सबकुछ शुरुआत से करने की कोई मजबूरी नहीं होती – आप मौजूदा सिस्टम जैसेकि विज्ञापन नेटवर्क और एफिलिएट(affiliate) प्रोग्रामों, का उपयोग करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होते है| एक बार काम चल निकलने के बाद आपको खुद की रोजी-रोटी कमाने के लिए इतने ज्यादा घंटे काम करने की ज़रूरत नहीं होगी| क्या ही अच्छा रहेगा कि आप अपने जीवन-साथी के साथ रात का खाना बाहर खा रहे हों और आप जानते हों कि आप खाना खाते वक्त भी पैसे कमा रहे हैं| अगर आप लगातार कई घंटों तक इसलिए काम करते रहना चाहते हैं क्योंकि ऐसा करना आपको खुशी देता हो तो आगे बढिए और काम कीजिए| अगर आप पैर फैला कर खाली बैठना चाहते हैं तो आप ऐसा करने के लिए भी आजाद हैं| जब तक आपका सिस्टम दूसरों तक मूल्य पहुंचाना जारी रखेगा, आपको कमाई होती रहेगी चाहे आप काम करें या न करें|
आपकी करीबी किताबों की दुकानें ऐसी किताबों से भरी पडी हैं जिनमें दूसरो के द्वारा बनाए गए, परीक्षण किए गए और कमियाँ दूर किए गए, सिस्टम्स का जिक्र है| कोई भी इंसान यह जानकारी लेकर तो इस दुनिया में नहीं आता कि बिजनेस कैसे शुरू किया जाए या इन्वेस्टमेंट से पैसा कैसे कमाया जाए, लेकिन इसे आसानी से सीखा जा सकता है| यह जानकारी हासिल करने में आपको कितना समय लगता है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि समय को तो आखिर गुजरना ही है| आप भविष्य के किसी मुकाम पर इनकम-कमाने वाले सिस्टम्स के मालिक बन सकते हैं बजाय इसके कि आप जीवन-भर बंधुआ मजदूर की तरह काम करें| यह आर-या-पार वाली बात नहीं है| अगर आपका सिस्टम महीने-भर में कुछ सौ डॉलर ही उत्पन्न(generate) कर पाता है तो भी यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है|
*2. सीमित अनुभव*
आपको लग सकता है कि अनुभव पाने के लिए एक नौकरी हासिल करना अहम् होता है| लेकिन यह बात कुछ ऐसी ही हुई कि आपको गोल्फ का अनुभव हासिल करने के लिए गोल्फ खेलनी चाहिए| आप अपने जीवन से अनुभव हासिल करते हैं, फिर चाहे आप नौकरी करें या न करें| एक नौकरी आपको केवल उसी काम का अनुभव देती है, लेकिन अनुभव तो आप किसी भी काम से हासिल कर सकते हैं, इसलिए इससे कोई वास्तविक फायदा नहीं होता| कुछ सालों तक सिर्फ इधर-उधर खाली बैठे रहिए, और आप खुद को अनुभवी दार्शिनिक, महात्मा या फिर पॉलिटिशियन कहलवा सकते हैं|
एक नौकरी से अनुभव हासिल करने के साथ समस्या यह है कि आप आमतौर पर केवल वही सीमित अनुभव बार-बार दोहराते रहते हैं| आप शुरुआत में बहुत कुछ सीखते हैं और फिर ठहर जाते हैं| यह, आपको दूसरे ऐसे अनुभव जो आपके लिए कहीं अधिक मूल्यवान होते, की कमी महसूस करने के लिए मजबूर करता है| और अगर आपका सीमित कौशल(skill-set) कहीं चलन से बाहर हो जाता है, तो फिर आपका अनुभव कूड़ेदान के लायक भी नहीं रहेगा| वास्तव में, खुद से पूछिए क्या जो अनुभव आप अभी वर्तमान में हासिल कर रहे हैं, उसकी कीमत 20-30 सालों तक भी कायम रहेगी| क्या तब तक आपकी नौकरी का कोई वजूद भी होगा?
ज़रा इस पर विचार करें| आप कौन सा अनुभव हासिल करना ज्यादा पसंद करेंगे? यह जानकारी कि एक ख़ास काम को किस तरह से अच्छे ढंग से किया जाए – एक ऐसा काम जिसमें आप केवल अपने समय को बेच कर धन कमा सकते हैं – या फिर यह जानकारी कि कैसे आप अपने बाकी के जीवन में फाइनेंसियल अबंडेंस (भरपूर धन-दौलत) हासिल कर सकते हैं वह भी एक नौकरी की जरूरत के बिना? अब मैं आपके बारे में तो नहीं जानता, लेकिन मैं तो दूसरा अनुभव हासिल करना पसंद करूंगा| यह वास्तविक दुनिया में कहीं ज्यादा उपयोगी नजर दिखाई देता है, क्या आपको नहीं लगता?
*3. जीवन-भर की गुलामी :*
एक नौकरी हासिल करना मानव-दासता(human domestication) प्रोग्राम में दाखिला लेने की तरह है| आप सीखते हैं कि किस तरह से एक अच्छा गुलाम बना जाता है|
ज़रा अपने चारों-ओर देखिए| वाकई देखिए| आपको क्या नजर आता है? क्या एक आजाद मनुष्य का माहौल ऐसा होता है? या फिर आप बेजुबान जानवरों के लिए बनाए गए एक पिंजरे में रह रहे हैं? क्या आपको अपने खूबसूरत पट्टे(beidge) से लगाव हो गया है?
आज्ञापालन(obdience) की आपकी ट्रेनिंग कैसी चल रही है? क्या आपका मालिक अच्छे व्यवहार पर आपको ईनाम देता है? अपने मालिक की आज्ञा नहीं मानने पर क्या आपको अनुशासित किया जाता है?
क्या आजादी की कोई चिंगारी आपके अंदर अभी-भी बाकी है? या फिर आपके सामाजिक-अनुकूलन(social conditioning) ने आपको जीवन-भर के लिए एक गुलाम बना दिया है?
इंसान पिंजरों में बड़े होने के लिए नहीं बने है| प्यारे गुलाम...
*4. एक अनार सौ बीमार.*
कर्मचारियों का वेतन पर सबसे ज्यादा टैक्स लगाया जाता है| ‘संयुक्त राज्य अमेरिका’ में आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि आपका आधा वेतन टैक्स में ही चला जाएगा| टैक्स सिस्टम इस बात को छुपाने के लिए इस तरह से डिजाईन किया जाता है कि आपको पता ही न चले कि आखिर आप कितना टैक्स दे रहे हैं, क्योंकि इनमें से कुछ टैक्स आपके मालिक(employer) द्वारा दिए जाते हैं, और कुछ आपकी तनख्वाह से काट लिए जाते हैं| लेकिन इस बात की तो आप शर्त लगा सकते हैं कि आपके मालिक के नजरिए से वे सभी टैक्स आपके वेतन का ही हिस्सा समझे जाते हैं, इसके अलावा आपको मिलने वाला किसी तरह का लाभ(मुआवजा/Compensation) भी आपके वेतन का ही हिस्सा होते हैं| यहाँ तक कि ऑफिस में आपको मिलने वाली जगह का किराया भी ध्यान में रखा जाता है, इसलिए आपको और ज्यादा मूल्य (value) पैदा करना होता है ताकि आप खर्चों(expenses) को पूरा (cover) कर पाएं| आपको लग सकता है कि कॉर्पोरेट का वातावरण(corporate environment) आपको सहारा दे रहा है, लेकिन ध्यान रखिए कि इसकी कीमत चुकाने वाले आप ही हैं|
आपके वेतन का एक और हिस्सा मालिकों और निवेशकों के पास चला जाता है| एक अनार सौ बीमार|
यह समझना मुश्किल नहीं है कि कर्मचारी अपनी आय के हिसाब से सबसे अधिक टैक्स क्यों चुकाते हैं| आखिरकार, टैक्स सिस्टम पर किसका अधिक नियंत्रण होता है? बिज़नेस मालिकों(business owners) का या फिर कर्मचारियों का?
आपको, अपने द्वारा उत्पन्न(generated) वास्तविक मूल्य के एक अंश का ही भुगतान(get paid) मिलता है, आपकी वास्तविक आय, आपके वर्तमान वेतन के तीन गुने(triple) से भी अधिक हो सकती है, लेकिन उसमें से अधिकतर पैसे को आप कभी देख भी नहीं पाएंगे| यह सीधे दूसरे लोगों की जेबों में चला जाता है.
आप कितने दरियादिल
(generous) इंसान हैं!
*5. रिस्क(जोखिम) बहुत ज्यादा है|*
कई कर्मचारियों को यकीन होता है कि नौकरी हासिल करना अपनी रोजी-रोटी कमाने का सबसे सुरक्षित और रिस्क-फ्री (risk-free) तरीका है|
सामाजिक-अनुकूलन
(social conditioning) कमाल का होता है| यह इतना अच्छा होता है कि यह लोगों को सच्चाई से एकदम उल्ट बातों का भी यकीन दिला सकता है|
क्या खुद को एक ऐसी स्थिति में रखना जहां पर कोई दूसरा व्यक्ति आपका पूरा वेतन सिर्फ कुछ शब्द कहकर (“आपको नौकरी से निकाला जाता है”) बंद कर सकता है, आपको सबसे सुरक्षित और रिस्क-फ्री (risk-free) लगता है? ईमानदारी से बताइए कि आय का केवल एक स्रोत(source) होना, आय के दस स्रोत होने से अधिक सुरक्षित लगता है?
यह विचार कि एक नौकरी ही आय कमाने का सबसे सुरक्षित तरीका है, बेहद बचकाना(silly) है| अगर आपके पास नियंत्रण(control/कंट्रोल) नहीं है तो आप सुरक्षित नहीं रह सकते, और कर्मचारियों के पास सबसे कम नियंत्रण होता है| अगर आप एक कर्मचारी हैं तो आपकी नौकरी का असली शीर्षक(title) ‘पेशवर जुआरी(professional gambler)’ होना चाहिए|
*6. एक बुरा मंदबुद्धि मालिक | *
अगर आप इंटरप्रेन्योर(self-employment) की दुनिया में एक बेफकूफ से टकराते हैं, तो आप वापस मुडकर दूसरी ओर चल देते हैं| लेकिन जब आप कॉर्पोरेट जगत में किसी बेफकूफ से टकराते हैं, तो आपको वापस मुड़कर कहना पड़ता है, “Sorry, Boss.” क्या आप जानते हैं कि ‘बॉस/Boss’ का शब्द, डच(Dutch) शब्द bass से निकला है, जिसका ऐतिहासिक अर्थ होता है मालिक? बॉस शब्द का दूसरा अर्थ होता है “एक गाय या मंदबुद्धि”| और कुछ विडियो गेमों में बॉस वह बुरा किरदार होता है जिसे आपको हर स्तर के अंत में ख़त्म करना होता है|
तो अगर आपका बॉस वाकई में आपका दुष्ट मंदबुद्धि मालिक है, तो फिर आप क्या बन जाएंगे? कूड़ेदान में एक और कीड़े के सिवाय कुछ भी नहीं|
इसका अपनी फैमिली से आपके संबंधों पर क्या असर पडेगा?
*7. पैसे के लिए भीख माँगना*
जब आप वेतन बढ़ाना चाहते हैं, तो क्या आपको देर तक ऑफिस में बैठकर अपने मालिक से ज्यादा पैसों की भीख मांगनी पड़ती है? क्या जब-तब कुछ ज्यादा बिस्कुट अपनी तरफ उछाल दिया जाना आपको अच्छा लगता है?
या फिर आप खुद के अलावा किसी और की इजाजत लिए बिना यह तय करने के लिए स्वतंत्र हैं कि आप कितना वेतन हासिल करना चाहते हैं?
अगर आपका खुद का बिजनेस हो और एक ग्राहक आपसे कहे “नहीं”, तो आप बरबस(simply) कह देते हैं “अगला”|
*8. एक सीमित सामाजिक जीवन*
बहुत से लोग अपनी नौकरियों को समाज से खुद को जोड़ने वाले दरवाजे की तरह मानते हैं| वे उसी फील्ड(field) में काम कर रहे उन्हीं लोगों से मिलते-जुलते रहते हैं| ऐसे करीबे रिश्ते समाज की बंद गलियों(dead ends) की तरह होते हैं| एक रोमांचक दिन, कंपनी के बारे में गहन-वार्तालाप(deep conversation) से शुरू होकर जल्द ही फुलझड़ियों से तीखें तीरों(arrowheads), राजनीति में किसने क्या कहा, और क्रिकेट में ताजा स्कोर क्या चल रहा है, में बदल जाता है| ज़रा सोचिए कि बाहर जाकर अजनबियों से बाते करना कैसा रहेगा| बेहद डरावना| अच्छा होगा कि अन्दर की सुरक्षा में ही रहा जाए|
अगर आपके साथी-गुलामों में से एक दूसरे मालिक को बेच दिया जाए, क्या आप एक दोस्त खो देंगे? अगर आप एक पुरुष-प्रधान(male dominated) फील्ड में काम करते हैं, तो इसका मतलब यह होगा कि आपको कभी भी रिसेप्शनिस्ट की पद(rank) से ऊपर की महिलाओं से बात करने का मौका नहीं मिल पायेगा? क्यों नहीं आप खुद इस बात का निर्णय लें कि आप किसके साथ मेल-जोल रखना चाहते हैं बजाय इसके कि आप अपने मालिक को खुद के लिए निर्णय लेने की इजाजत दें? आप मानें या ना मानें, इस धरती पर ऐसी भी जगहें हैं जहां पर आजाद लोग इकठ्ठा होते हैं| बस उन बेरोजगार लोगों से ज़रा होशियार रहिए¬ – वे तो पूरी तरह से पागल हैं!
*9. आजादी खो देना|*
एक इंसान को एक कर्मचारी के रूप में ढालने में बहुत ज्यादा मेहनत लगती है| पहली चीज जो आपको करनी होती है वह है इंसान की स्वतंत्र इच्छा को तोडना| यह करने का एक अच्छा तरीका है उन्हें बेतुके नियम और कायदे से भरी हुई एक गाईड पकड़ा देना| यह नए कर्मचारी को ज्यादा आज्ञाकारी बनाने में मदद करता है, डराते हुए कि उसे समझ से बाहर किसी भी चीज के लिए किसी भी पल अनुशासित किया जा सकता है| इसलिए कर्मचारी शायद निष्कर्ष निकाल लेगा कि बिना सवाल किये मालिक की आज्ञा मान लेना ही सबसे सुरक्षित तरीका है| इसमें थोडा सा ऑफिस पॉलिटिक्स का तडका लगा दीजिए, और लीजिए हमें ताजा तैयार हुआ एक मानसिक गुलाम मिल गया|
उनकी आज्ञापालन (obedience) की ट्रेनिंग के हिस्से के तौर पर, कर्मचारियों को कपडे पहनने, बात करने, चलने और भी बहुत से तरीके सिखाए जाने चाहिएं| हमें ऐसे कर्मचारी नहीं चाहिएं जो अपने बारे में बहुत अच्छा सोचते हों, या फिर चाहिएं? अगर ऐसा हो गया तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा|
न करे कि आप अपनी मेज पर एक पौधा रख दें जबकि यह कम्पनी के नियमों के खिलाफ हो | हे प्रभु, अब तो दुनिया ही ख़त्म हो जाएगी| ‘सिंडी’ की मेज पर एक पौधा है ! मैनेजर को बुलाओ ! ‘सिंडी’ को फिर से कड़ी ट्रेनिंग के लिए भेजो|
आजाद इंसान बेशक ऐसे नियमों और कायदों(regulations) को बचकाना मानते हैं| उन्हें केवल एक ही नीति(policy) की जरूरत होती है : “स्मार्ट बनिए| अच्छे बनिए| वह कीजिए जिससे आपको प्यार हो| आनंद उठाइए|”
*10. एक कायर बन जाना|*
क्या आपने कभी गौर किया है कि कर्मचारी लोगों के पास शिकायत करते रहने की अनंत(endless) क्षमता होती है जब वे अपनी कम्पनियों में काम कर रहे होते हैं? लेकिन वास्तव में वे समाधान नहीं चाहते वे तो केवल अपनी भड़ास निकालना चाहते हैं और बहाने बनाना चाहते हैं कि क्यों यह सब किसी दूसरे की गलती है| यह कुछ ऐसा है जैसे कि नौकरी हासिल करना किसी तरह से सम्पूर्ण स्वतंत्र-इच्छा(free-will) को लोगों से बाहर निकाल फेंकता है और उन्हें रीढ़-रहित कायरों में बदल देता है| अगर आप कभी कभार अपने बॉस को, नौकरी से निकाले जाने के डर के बगैर, पागल नहीं कह सकते, तो फिर आप आजाद नहीं रहे| आप अपने मालिक की संपत्ति बन गए हैं|
जब आप कायरों के साथ पूरे दिन काम करेंगे, तो आपको नहीं लगता कि यह आप पर असर डालने लगेगा? बेशक ऐसा ही होगा| यह केवल कुछ समय की ही बात है जब आप अपनी मानवता का सबसे अच्छे हिस्से को डर की बलि-वेदी(बलि देने की जगह) पर कुर्बान कर देंगे| आपने अपनी इंसानियत को केवल एक भ्रम(illusion) के लिए बेच दिया|और अब आप सबसे बड़ा डर होता है इस सच्चाई का पता करना कि आप क्या बन चुके हैं| इस बात की परवाह नही करे कि आपको कितनी बुरी तरह से हराया(beaten down) गया है| अपनी हिम्मत को फिर से हासिल करने के लिए कभी भी देर नहीं होती (देर आए – दुरुस्त आए)| कभी नहीं !
*अभी भी एक नौकरी करना चाहते हैं?*
अगर आप वर्तमान में एक आज्ञाकारी, सभ्य कर्मचारी हैं तो, ऊपर लिखे गए वाक्यों पर, आपकी सबसे संभावित प्रतिक्रिया बचाव की ही होगी| यह सब कंडीशनिंग का ही हिस्सा है| लेकिन ज़रा विचार कीजिए कि अगर ऊपर लिखे गए वाक्यों में सच्चाई का अंश नहीं होता तो, आप कोई भी भावनात्मक प्रतिक्रिया(emotional reaction) महसूस नही करते| यह, जो कुछ आप पहले से ही जानते हैं, उसे याद दिलाने का सिर्फ एक तरीका भर था| आप जितना मर्जी चाहें अपने पिंजरे के अस्तित्व से इनकार कर सकते हैं, लेकिन पिंजरा तो अभी भी वहीं पर है| शायद यह सबकुछ इतना धीरे धीरे हुआ कि आपने इस पर अभी तक गौर नहीं किया उस झींगा मछली की तरह जोकि कढाई(pan) के एक गर्म बढ़िया स्नान(bath) का आनंद ले रही थी|
अगर यह सब सोचना आपको पागल बना देता है, तो यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है| क्रोध, उदासीनता के तुलना में एक कहीं ऊंचा चेतना-स्तर है, इसलिए यह हर वक्त जड़(numb) बने रहने से कहीं ज्यादा अच्छा है| कोई भी भाव(emotion) यहाँ तक कि भ्रम भी उदासीनता से बेहतर होता है| अगर आप अपनी भावनाओं को दबाने की बजाय उनके साथ काम कर सकें, तो आप जल्द ही हिम्मत के दरवाजे पर खड़े होंगे| और जब ऐसा होता है, तो आपके पास, अपनी स्थिति के बारे में कुछ करने और एक शक्तिशाली मनुष्य की तरह जीने की, (जैसा कि आपको जीना चाहिए बजाय इसके कि आप उस पालतू गुलाम की तरह बनें जिसकी ट्रेनिंग आपको दी गई है), इच्छाशक्ति होनी चाहिए|
खुशी से बेरोजगार|
तो फिर नौकरी हासिल करने के अलावा और दूसरा विकल्प(alternative) क्या है ? वह विकल्प है जीवन-भर खुशी-खुशी बेरोजगार रहना और दूसरे साधनों के जरिए आय(income) कमाना| इस बात को जानिए कि आप इनकम, मूल्य(वैल्यू) को देकर कमाते हैं न कि समय देकर इसलिए अपनी बेहतरीन वैल्यू दूसरों तक पहुंचाने का एक रास्ता ढूंढिए, और इसके लिए एक उचित कीमत तय कीजिए| इसका एक सबसे आसान और सुलभ(accessible) तरीका है अपने खुद के बिजनेस की शुरुआत करना| जो कुछ काम आप अपनी नौकरी में वैसे भी करते, उसी वैल्यू को सीधे उन लोगों तक, जिनको इससे सबसे अधिक फायदा हो, पहुंचाने का एक रास्ता ढूंढिए| इसे शुरू करने में थोड़ा ज्यादा समय लगता है, लेकिन शुरुआत में अपना समय और ऊर्जा लगाने के बदले आपको जो आजादी मिलती है वह इसकी भरपाई कर देती है| फिर तो आप कभी-कभार अपनी खुद की कमाई से अपने लिए कुछ खरीदारी भी कर सकते हैं|
और बेशक इस रास्ते पर चलकर आप जो कुछ भी सीखते हैं, वह दूसरे के साथ बांटकर और ज्यादा वैल्यू भी उत्पन्न(generate) कर सकते हैं| यहाँ तक कि आपकी गलतियां भी आपकी कमाई का जरिया बन सकती हैं|
एक सबसे बड़ा डर जिसका सामना आप करेंगे वह है कि शायद आपके पास कोई असली वैल्यू ही नहीं है जिसे आप दूसरों के साथ बाँट सकें| शायद एक कर्मचारी के रूप में घंटों के हिसाब से वेतन हासिल करना ही वह सबसे बेहतर काम है जिसे आप कर सकते हैं| या शायद आप इससे ज्यादा के लायक ही नहीं हैं| इस तरह से सोचना केवल आपकी कंडीशनिंग का ही हिस्सा है| कोरी बकवास| जब आप ऐसी ब्रेनवाशिंग(दिमाग में कूट-कूट कर भरी बात) को कूड़ेदान में फेंकना शुरू कर देते हैं, तो आपको जल्द ही महसूस होने लगता है कि आपके पास दूसरों के साथ बांटने के लिए वैल्यू का निर्माण करने की अपार(enormous) क्षमता है और यह भी कि लोग आपको इसकी कीमत चुकाने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो जाएंगे| केवल एक ही चीज आपको इस सच्चाई देखने से रोक सकती है और वह है डर|
आपको सिर्फ अपनी स्वाभाविकता में रहने के लिए केवल हिम्मत की जरूरत होती है| आपकी असली वैल्यू, आप कौन हैं इसमें निहित(rooted in) होती है न कि आप क्या करते हैं? आपको हकीकत में केवल अपने वास्तविक रूप को दुनिया के सामने जाहिर करने की जरूरत होती है| आपको दुनिया भर के झूठ बताए गए होंगे कि आप ऐसा क्यों नहीं कर सकते| लेकिन जब तक आप ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा लेते तब तक आप कभी नहीं जान पाएंगे कि सच्ची खुशी और संतुष्टि क्या होती हैं |
तो अगली बार जब कोई आपसे यह कहे कि नौकरी कर लो, तो मैं आपको वही जवाब देने की सलाह दूंगा जोकि ‘कर्ली’ ने दिया था : नहीं, बस यह नहीं! इसके सिवा कुछ भी बस यह नहीं! और फिर उसकी आखों में झाँक कर देखिए|
आप पहले से ही जानते है कि एक नौकरी हासिल्र करना आपका सपना नहीं था| इसलिए किसी दूसरे के विचारों को अपने सपनों पर हावी होने की इजाजत मत दीजिए| अपने खुद के विवेक(wisdom) पर भरोसा करना सीखिए, तब भी जब सारी दुनिया आपसे यह कहने लगे कि ऐसा कर के आप गलती कर रहे हैं या फिर आप मूर्ख हैं | आज से कुछ सालों के बाद आप जब मुड कर आज को देखेंगे तो आप पाएंगे कि यह आपका अब तक का सबसे बेहतरीन निर्णय था|
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