DREAMS मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती ह


'मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है।
क्या आप कल्पना सरोज के बारे में जानते हैं. या कभी अशोक खाड़े के बारे में सुना है. कोटा ट्यूटोरियल के बारे में तो जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इसके मालिक कौन है. सवालों का पहलू बदलते है. अंबानी, टाटा या बिड़ला के बारे में तो आपको बखूबी पता होगा. अब आप कहेंगे कि ये क्या सवाल है. दरअसल कल्पना सरोज, अशोक खाड़े और हर्ष भास्कर भी औरों की तरह ही बिजनेसमैन है. लेकिन हमसे ज्यादातर लोगों को इनके बारे में नहीं पता. और ये सच है.

इनका संबंध भारतीय समाज के दलित वर्ग से है. जिन्हें अछूत समझा जाता रहा, भेदभाव हुआ. लेकिन इन लोगों ने अपने संघर्षों और चट्टानी जीवट के दम पर सफलता के नए सोपान लिखें और भारतीय उद्योग जगत में अपनी पहचान कायम की. पेंगुइन बुक्स से 2013 में प्रकाशित मिलिंद खांडेकर की किताब दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां के नायक है कल्पना सरोज, अशोक खाड़े और हर्ष भास्कर जैसे लोग. और शायद हमारे समाज के असली हीरो भी. दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां में 15 कहानियां है. जिनमें 15 दलित उद्योगपतियों के संघर्ष को शॉर्ट स्टोरीज की शक्ल में हमारे समाने रखा है मिलिंद खांडेकर ने. मिलिंद पत्रकार रहे हैं और नोएडा में मीडिया कंटेट एंड कम्यूनिकेशंस सर्विसेज (आई) प्रा. लि. मुंबई के प्रबंध संपादक है.
 
ये कहानियां दलित करोड़पतियों की है. जिन्होंने शून्य से शुरू कर कामयाबी के नए आयाम रचे. जिनके पास पेन की नीब बदलने के लिए पैसे नहीं थे आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में है. लेकिन उन्होंने ये कामयाबी कैसे हासिल की, क्या मुश्किलें आई और उन्होंने इन मुश्किलों पर कैसे फतह हासिल की. इसी का खुलासा करती है ये किताब. इन कहानियों में कामयाबी हासिल करने की दास्तान है जो प्रेरित करती हैं. ये मन को छूती है और हृदय में गहरे तक उतर तक जाती है. भारतीय समाज में दलितों की स्थिति हाशिये पर रही है. उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है. लेकिन इन कहानियों को पढ़कर पता चलता है कि ओपन मार्केट में भी उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुई. बैंक उन्हें लोन देने से इसलिए मना कर देते थे कि वे दलित थे. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चीनी मिल की परमिशन नहीं देते है क्योंकि एक दलित चीनी मिल खोलना चाहता है. मुंबई में एक कांग्रेसी नेता को मंजूर नहीं था कि कोई दलित महिला कल्याण में जमीन खरीद पाए. मिलिंद खांडेकर ने 15 दलित उद्योगपति की कहानियां लिखने के साथ ही. सरकार से अपेक्षा, छुआछुत और उदारीकरण पर उनकी राय भी ली है. दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक खाड़े कहते हैं कि 'उनके गांव में छुआछुत जरूर थी, पर हमें भूख से मरने नहीं दिया गया.' कोटा ट्यूटोरियल के हर्ष भास्कर कहते हैं कि 'रिजर्वेशन से एडमिशन मिलता है, डिग्री नहीं. सरकार फीस के लिए स्कॉलरशिप देती है, जो कभी समय पर नहीं मिलती. ताने बच्चे को सुनने पड़ते हैं.' गुजरात पिकर्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन रतिलाल मकवाना दलित बच्चों को सुझाव देते हुए कहते हैं कि 'बिजनेस करने से पहले पढ़ाई लिखाई कर लो, हो सके तो अच्छा करियर बनाकर थोड़ी पूंजी जोड़ लो. बिजनेस में नुकसान होगा तो तुम्हें उबारने की ताकत ना परिवार में होगी, ना तुम्हारे जानने वालों में.' सच है जिनके पास कुछ हो ही नहीं, उन्हें कौन उबारेगा.

 
मिलिंद की किताब की भाषा आसान है. लिखाई में कसावट है और कहानी इतनी प्रभावशाली है कि एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो फिर छोड़ने का मन नहीं करता. उदारीकरण के बाद खुले बाजार में सबके पास बराबर मौके है. क्योंकि बाजार की स्मृति में कोई वर्ण व्यवस्था दर्ज नहीं है. ये अलग बात है कि समाज के उच्च वर्ण से आने वाले उद्योगपतियों को इसका अहसास है. ऐसे में 20 साल की उदारवादी आर्थिक व्यवस्था में हाशिये पर खड़े समाज की क्यारी में खिले इन नायकों की कहानियां दिलचस्प बन जाती है. क्योंकि जो समाज इन्हें शुरू में स्वीकारता नहीं है. बाद में सस्ता और टिकाऊ माल इन्हीं से खरीदता है. अगर बेहतर सामान मिल रहा है तो बेचने वाले के दलित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि बाजार उत्पाद की गुणवत्ता देखता है ना कि जाति. और यही है इन दलित उद्योगपतियों की सफलता का मूलमंत्र.

बाजार में तमाम तरह की प्रेरित करने वाली किताबें है. जिनके नायक यूरोपीय और अमेरिकी होते हैं. जो बताते है कि सफलता कैसे हासिल करें और अमीर बनने के उपाय भी सुझाते हैं. लेकिन दलित करोड़पति के नायक देसी है और अमीर बनने का कोई शॉर्ट नुस्खा नहीं है इनके पास. हां, इसमें कोई शक नहीं ये कहानियां प्रेरित करती है. ये बताती है कि 'जब तक पलाश पर फूल आते रहेंगे आदमी मर नहीं सकता. क्योंकि अकाल में भी पलाश पर फूल लगते हैं.' उदारवाद की रोशनी भारतीय समाज के वंचित हिस्सों को कितना रोशन कर पाई ये जानने के लिए भी 'दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां' पढ़ी जानी चाहिए.

 

'मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है।
क्या आप कल्पना सरोज के बारे में जानते हैं. या कभी अशोक खाड़े के बारे में सुना है. कोटा ट्यूटोरियल के बारे में तो जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इसके मालिक कौन है. सवालों का पहलू बदलते है. अंबानी, टाटा या बिड़ला के बारे में तो आपको बखूबी पता होगा. अब आप कहेंगे कि ये क्या सवाल है. दरअसल कल्पना सरोज, अशोक खाड़े और हर्ष भास्कर भी औरों की तरह ही बिजनेसमैन है. लेकिन हमसे ज्यादातर लोगों को इनके बारे में नहीं पता. और ये सच है.

इनका संबंध भारतीय समाज के दलित वर्ग से है. जिन्हें अछूत समझा जाता रहा, भेदभाव हुआ. लेकिन इन लोगों ने अपने संघर्षों और चट्टानी जीवट के दम पर सफलता के नए सोपान लिखें और भारतीय उद्योग जगत में अपनी पहचान कायम की. पेंगुइन बुक्स से 2013 में प्रकाशित मिलिंद खांडेकर की किताब दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां के नायक है कल्पना सरोज, अशोक खाड़े और हर्ष भास्कर जैसे लोग. और शायद हमारे समाज के असली हीरो भी. दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां में 15 कहानियां है. जिनमें 15 दलित उद्योगपतियों के संघर्ष को शॉर्ट स्टोरीज की शक्ल में हमारे समाने रखा है मिलिंद खांडेकर ने. मिलिंद पत्रकार रहे हैं और नोएडा में मीडिया कंटेट एंड कम्यूनिकेशंस सर्विसेज (आई) प्रा. लि. मुंबई के प्रबंध संपादक है.
 
ये कहानियां दलित करोड़पतियों की है. जिन्होंने शून्य से शुरू कर कामयाबी के नए आयाम रचे. जिनके पास पेन की नीब बदलने के लिए पैसे नहीं थे आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में है. लेकिन उन्होंने ये कामयाबी कैसे हासिल की, क्या मुश्किलें आई और उन्होंने इन मुश्किलों पर कैसे फतह हासिल की. इसी का खुलासा करती है ये किताब. इन कहानियों में कामयाबी हासिल करने की दास्तान है जो प्रेरित करती हैं. ये मन को छूती है और हृदय में गहरे तक उतर तक जाती है. भारतीय समाज में दलितों की स्थिति हाशिये पर रही है. उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है. लेकिन इन कहानियों को पढ़कर पता चलता है कि ओपन मार्केट में भी उनकी परेशानियां खत्म नहीं हुई. बैंक उन्हें लोन देने से इसलिए मना कर देते थे कि वे दलित थे. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चीनी मिल की परमिशन नहीं देते है क्योंकि एक दलित चीनी मिल खोलना चाहता है. मुंबई में एक कांग्रेसी नेता को मंजूर नहीं था कि कोई दलित महिला कल्याण में जमीन खरीद पाए. मिलिंद खांडेकर ने 15 दलित उद्योगपति की कहानियां लिखने के साथ ही. सरकार से अपेक्षा, छुआछुत और उदारीकरण पर उनकी राय भी ली है. दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक खाड़े कहते हैं कि 'उनके गांव में छुआछुत जरूर थी, पर हमें भूख से मरने नहीं दिया गया.' कोटा ट्यूटोरियल के हर्ष भास्कर कहते हैं कि 'रिजर्वेशन से एडमिशन मिलता है, डिग्री नहीं. सरकार फीस के लिए स्कॉलरशिप देती है, जो कभी समय पर नहीं मिलती. ताने बच्चे को सुनने पड़ते हैं.' गुजरात पिकर्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन रतिलाल मकवाना दलित बच्चों को सुझाव देते हुए कहते हैं कि 'बिजनेस करने से पहले पढ़ाई लिखाई कर लो, हो सके तो अच्छा करियर बनाकर थोड़ी पूंजी जोड़ लो. बिजनेस में नुकसान होगा तो तुम्हें उबारने की ताकत ना परिवार में होगी, ना तुम्हारे जानने वालों में.' सच है जिनके पास कुछ हो ही नहीं, उन्हें कौन उबारेगा.

 
मिलिंद की किताब की भाषा आसान है. लिखाई में कसावट है और कहानी इतनी प्रभावशाली है कि एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो फिर छोड़ने का मन नहीं करता. उदारीकरण के बाद खुले बाजार में सबके पास बराबर मौके है. क्योंकि बाजार की स्मृति में कोई वर्ण व्यवस्था दर्ज नहीं है. ये अलग बात है कि समाज के उच्च वर्ण से आने वाले उद्योगपतियों को इसका अहसास है. ऐसे में 20 साल की उदारवादी आर्थिक व्यवस्था में हाशिये पर खड़े समाज की क्यारी में खिले इन नायकों की कहानियां दिलचस्प बन जाती है. क्योंकि जो समाज इन्हें शुरू में स्वीकारता नहीं है. बाद में सस्ता और टिकाऊ माल इन्हीं से खरीदता है. अगर बेहतर सामान मिल रहा है तो बेचने वाले के दलित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि बाजार उत्पाद की गुणवत्ता देखता है ना कि जाति. और यही है इन दलित उद्योगपतियों की सफलता का मूलमंत्र.

बाजार में तमाम तरह की प्रेरित करने वाली किताबें है. जिनके नायक यूरोपीय और अमेरिकी होते हैं. जो बताते है कि सफलता कैसे हासिल करें और अमीर बनने के उपाय भी सुझाते हैं. लेकिन दलित करोड़पति के नायक देसी है और अमीर बनने का कोई शॉर्ट नुस्खा नहीं है इनके पास. हां, इसमें कोई शक नहीं ये कहानियां प्रेरित करती है. ये बताती है कि 'जब तक पलाश पर फूल आते रहेंगे आदमी मर नहीं सकता. क्योंकि अकाल में भी पलाश पर फूल लगते हैं.' उदारवाद की रोशनी भारतीय समाज के वंचित हिस्सों को कितना रोशन कर पाई ये जानने के लिए भी 'दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां' पढ़ी जानी चाहिए.

 

->"DREAMS मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती ह"

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