सौजन्य *eBuddha Library*
दिल्ली के राजकुमार एजुकेशनल टॉय एक्सपोर्टर हैं। एजुकेशनल टॉय का एक्सपोर्ट शुरू करने से लेकर उसे स्थापित करने तक का कैसा रहा उनका सफर, जानिए खुद उन्हीं से:
1985 में मैंने टीचिंग प्रफेशन से वॉलंटरी रिटायरमेंट ले लिया। पढ़ाने के दौरान मुझे हमेशा लगा कि बाजार में बच्चों के लिए टीचिंग एड नहीं हैं। दो साल तक मैंने रिसर्च की और फिर इस कारोबार में आया।
*शुरुआती सफरः*
यह सफर बहुत मुश्किल था, क्योंकि घरेलू बाजार में कोई एजुकेशनल टॉय नहीं बनाता था। हमें सब कुछ शुरू से करना था। हमने इंटरनैशनल मार्केट्स से चीजें देखीं और समझीं। उस समय आज की तरह इंटरनेट नहीं था, इसलिए इंटरनैशनल ट्रेंड की स्टडी करना भी चुनौती था। हमने ध्यान रखा कि एक्सपोर्ट के लिए जो गुड्स बनाए जाएं, उनमें इलस्ट्रेशन उन देशों में चालू ट्रेंड के हिसाब से हो, जहां हमारे टॉय भेजे जाते हैं। 1997 में हमने एक्सपोर्ट शुरू किया। पहली बार जर्मनी, हॉन्गकॉन्ग में स्पेस ली और फिर काम शुरू कर दिया। मैं टॉयज असोसिएशन का प्रेजिडेंट था, तो अपने साथ 15 और कंपनियों को ले गया। सबको शुरू में ही ऑर्डर मिल गए। वे सभी कंपनियां आज भी वहां जाती हैं।
यह सफर बहुत मुश्किल था, क्योंकि घरेलू बाजार में कोई एजुकेशनल टॉय नहीं बनाता था। हमें सब कुछ शुरू से करना था। हमने इंटरनैशनल मार्केट्स से चीजें देखीं और समझीं। उस समय आज की तरह इंटरनेट नहीं था, इसलिए इंटरनैशनल ट्रेंड की स्टडी करना भी चुनौती था। हमने ध्यान रखा कि एक्सपोर्ट के लिए जो गुड्स बनाए जाएं, उनमें इलस्ट्रेशन उन देशों में चालू ट्रेंड के हिसाब से हो, जहां हमारे टॉय भेजे जाते हैं। 1997 में हमने एक्सपोर्ट शुरू किया। पहली बार जर्मनी, हॉन्गकॉन्ग में स्पेस ली और फिर काम शुरू कर दिया। मैं टॉयज असोसिएशन का प्रेजिडेंट था, तो अपने साथ 15 और कंपनियों को ले गया। सबको शुरू में ही ऑर्डर मिल गए। वे सभी कंपनियां आज भी वहां जाती हैं।
*एक्सपोर्ट स्ट्रैटिजीः*
एक्सपोर्ट में प्रॉडक्ट का सिलेक्शन सबसे अहम है। जिस भी देश में काम शुरू करना हो, वहां पहले 1-2 साल स्टडी करनी चाहिए। प्रॉडक्ट चुनते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वहां कॉम्पिटिशन कैसा है। अगर आप ऐसी चीज बेचने जाएंगे, जिसमें दिमाग का खेल नहीं है तो आप प्राइस वॉर में फंस जाएंगे। इस लिहाज से मेरा काम आसान रहा क्योंकि एजुकेशनल टॉयज एक खास इंडस्ट्री है। ऐसी इंडस्ट्री में आपको मार्जिन अच्छा मिलता है।
एक्सपोर्ट में प्रॉडक्ट का सिलेक्शन सबसे अहम है। जिस भी देश में काम शुरू करना हो, वहां पहले 1-2 साल स्टडी करनी चाहिए। प्रॉडक्ट चुनते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वहां कॉम्पिटिशन कैसा है। अगर आप ऐसी चीज बेचने जाएंगे, जिसमें दिमाग का खेल नहीं है तो आप प्राइस वॉर में फंस जाएंगे। इस लिहाज से मेरा काम आसान रहा क्योंकि एजुकेशनल टॉयज एक खास इंडस्ट्री है। ऐसी इंडस्ट्री में आपको मार्जिन अच्छा मिलता है।
*बाजार की समझः*
सारा दारोमदार इस बात पर है कि आप जिस बाजार में कारोबार करना चाहते हैं, उसे कितना समझते हैं। एक्सपोर्ट मार्केट में बने रहने के लिए इनोवेशन जरूरी है। हर बाजार के नियम अलग हैं। आपको इन नियमों का ध्यान रखना चाहिए। हम कॉमनवेल्थ देशों में अपना माल ज्यादा भेजते हैं क्योंकि इन देशों की इंग्लिश हमारे देश जैसी है। अगर हम अमेरिका या यूरोप में माल भेजेंगे तो हमें अपने प्रॉडक्ट में बहुत ज्यादा बदलाव करना होगा और कॉस्ट बढ़ेगी।
सारा दारोमदार इस बात पर है कि आप जिस बाजार में कारोबार करना चाहते हैं, उसे कितना समझते हैं। एक्सपोर्ट मार्केट में बने रहने के लिए इनोवेशन जरूरी है। हर बाजार के नियम अलग हैं। आपको इन नियमों का ध्यान रखना चाहिए। हम कॉमनवेल्थ देशों में अपना माल ज्यादा भेजते हैं क्योंकि इन देशों की इंग्लिश हमारे देश जैसी है। अगर हम अमेरिका या यूरोप में माल भेजेंगे तो हमें अपने प्रॉडक्ट में बहुत ज्यादा बदलाव करना होगा और कॉस्ट बढ़ेगी।
*प्रॉडक्ट का चुनावः*
यह इस पर निर्भर है कि आप कितना इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं। कम इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं तो वैसे प्रॉडक्ट चुनें, जिनमें आइडिया की अहमियत हो। प्रॉडक्ट जो भी हो, क्वॉलिटी अच्छी होनी चाहिए और सेफ्टी का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
यह इस पर निर्भर है कि आप कितना इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं। कम इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं तो वैसे प्रॉडक्ट चुनें, जिनमें आइडिया की अहमियत हो। प्रॉडक्ट जो भी हो, क्वॉलिटी अच्छी होनी चाहिए और सेफ्टी का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
*फंडिंग का फॉर्म्युलाः*
क्लस्टर सरकार की बहुत बड़ी स्कीम है, जिसका फायदा लोग नहीं उठाते। इस डर से कि दूसरों को भी पता न चल जाए। क्लस्टर स्कीम में एक ही तरह के प्रॉडक्ट बनाने वाले लोग मिलकर सरकार को अप्रोच करते हैं और फिर सरकार उसे एक इंडस्ट्री की तरह लेती है। इस स्कीम में 80 फीसदी फंडिंग बिना ब्याज के होती है।
क्लस्टर सरकार की बहुत बड़ी स्कीम है, जिसका फायदा लोग नहीं उठाते। इस डर से कि दूसरों को भी पता न चल जाए। क्लस्टर स्कीम में एक ही तरह के प्रॉडक्ट बनाने वाले लोग मिलकर सरकार को अप्रोच करते हैं और फिर सरकार उसे एक इंडस्ट्री की तरह लेती है। इस स्कीम में 80 फीसदी फंडिंग बिना ब्याज के होती है।
*जब मुश्किल हों हालातः*
इंटरनैशनल ट्रांजैक्शन के बिजनेस में सफल होने के लिए विदेशी इकॉनमी के हालात और करेंसी एक्सचेंज जैसे फैक्टर अहम हैं। आपको ऐसी परिस्थिति के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
यहां सफलता का एक मंत्र है - *स्लो एंड स्टेडी।*
इंटरनैशनल ट्रांजैक्शन के बिजनेस में सफल होने के लिए विदेशी इकॉनमी के हालात और करेंसी एक्सचेंज जैसे फैक्टर अहम हैं। आपको ऐसी परिस्थिति के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
यहां सफलता का एक मंत्र है - *स्लो एंड स्टेडी।*
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